11-04-85  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

मुख्य भाई-बहनों की मीटिंग में अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य

आज विशेष विश्व-परिवर्तन, आधार स्वरूप, विश्व के बेहद सेवा के आधार स्वरूप, श्रेष्ठ स्मृति, बेहद की वृत्ति, मधुर अमूल्य बोल बोलने के आधार द्वारा औरों को भी ऐसे उमंग-उत्साह दिलाने के आधार स्वरूप निमित्त और निर्मान स्वरूप ऐसी विशेष आत्माओं से मिलने के लिए आये हैं। हर एक अपने को ऐसा आधार स्वरूप अनुभव करते हो? आधार रूप आत्माओं के इस संगठन पर इतनी बेहद की जिम्मेवारी है। आधार रूप अर्थात् सदा स्वयं को हर समय, हर संकल्प, कर्म में जिम्मेवार समझ चलने वाले। इस संगठन में आना अर्थात् बेहद के जिम्मेवारी के ताजधारी बनना। यह संगठन जिसको मीटिंग कहते हो, मीटिंग में आना अर्थात् सदा बाप से, सेवा से, परिवार से, स्नेह के श्रेष्ठ संकल्प के धागे में बंधना और बांधना, इसके आधार रूप हो। इस निमित्त संगठन में आना अर्थात् स्वयं को सर्व के प्रति एग्जैम्पुल बनाना। यह मीटिंग नहीं लेकिन सदा मर्यादा पुरूषोत्तम बनने के शुभ संकल्प के बंधन में बंधना है। इन सब बातों के आधार स्वरूप बनना इसको कहा जाता है - आधार स्वरूप संगठन। चारों ओर के विशेष चुने हुए रतन इकट्ठे हुए हो। चुने हुए अर्थात् बाप समान बने हुए। सेवा का आधार स्वरूप अर्थात् स्व उद्धार और सर्व के उद्धार स्वरूप। जितना स्व के उद्धार स्वरूप होंगे उतना ही सर्व के उद्धार स्वरूप निमित्त बनेंगे। बापदादा इस संगठन के आधार रूप और उद्धार रूप बच्चों को देख रहे थे और विशेष विशेषता देख रहे थे आधार रूप भी बन गये, उद्धार रूप भी बने। इन दोनों बातों में सफलता पाने के लिए तीसरी क्या बात चाहिए? आधार रूप हैं तभी तो निमन्त्रण पर आये हैं ना। और उद्धार रूप हैं तब तो प्लैन्स बनाये हैं। उद्धार करना अर्थात् सेवा करना। तीसरी बात क्या देखी? जितने विशेष संगठन के हैं उतने उदारचित्त। उदारदिल वा उदारचित्त के बोल, उदारचित्त की भावना कहाँ तक है? क्योंकि उदारचित्त अर्थात् सदा हर कार्य में फ़रागदिल, बड़ी दिल वाले। किस बात में फ़रागदिल वा बड़ी दिल हो? सर्व प्रति शुभ भावना द्वारा आगे बढ़ाने में फ़रागदिल। तेरा सो मेरा, मेरा सो तेरा। क्योंकि एक ही बाप का है। इस बेहद की वृत्ति में फ़रागदिल। बड़ी दिल हो। उदार दिल हो अर्थात् दातापन की भावना की दिल। अपने प्राप्त किये हुए गुण, शक्तियाँ, विशेषतायें सबमें महादानी बनने में फ़रागदिल। वाणी द्वारा ज्ञान धन दान करना यह कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन गुण दान वा गुण देने के सहयोगी बनना। यह दान शब्द ब्राह्मणों के लिए योग्य नहीं है। अपने गुण से दूसरे को गुणवान, विशेषता भरने में सहयोगी बनना इसको कहा जाता है महादानी, फ़रागदिल। ऐसा उदारचित्त बनना, उदार दिल बनना यह है ब्रह्मा बाप को फॉलो फादर करना। ऐसे उदारचित्त की निशानी क्या होगी?

तीन निशानियाँ विशेष होंगी। ऐसी आत्मा ईर्ष्या, घृणा और क्रिटिसाइज करना (जिसको टोन्ट मारना कहते हो) इन तीनों बातों से सदा मुक्त होगी। इसको कहा जाता उदारचित्त। ईर्ष्या स्वयं को भी परेशान करती, दूसरे को भी परेशान करती है। जैसे क्रोध को अग्नि कहते हैं ऐसे ईर्ष्या भी अग्नि जैसा ही काम करती है। क्रोध महा अग्नि है, ईष्या छोटी अग्नि है। घृणा कभी भी शुभ चिन्तक, शुभ चिन्तन स्थिति का अनुभव नहीं करायेगी। घृणा अर्थात् खुद भी गिरना और दूसरे को भी गिराना। ऐसे क्रिटिसाइज करना चाहे हँसी में करो, चाहे सीरियस होकर करो लेकिन यह ऐसा दु:ख देता है जैसे कोई चल रहा हो, उसको धक्का देकर गिराना। ठोकर देना। जैसे कोई गिरा देते तो छोटी चोट वा बड़ी चोट लगने से वह हिम्मतहीन हो जाता है। उसी चोट को ही सोचते रहते हैं, जब तक वो चोट होगी तब तक चोट देने वाले को किसी भी रूप में याद जरूर करता रहेगा यह साधारण बात नहीं है। किसके लिए कह देना बहुत सहज है। लेकिन हँसी की चोट भी दु:ख रूप बन जाती है। यह दु:ख देने की लिस्ट में आता है। तो समझा! जितने आधार स्वरूप हो उतने उद्धार स्वरूप, उदारदिल, उदारचित्त बनने के निमित्त स्वरूप। निशानियाँ समझ ली ना। उदारचित्त फ़रागदिल होगा।

संगठन तो बहुत अच्छा है। सभी नामीग्रामी आये हुए हैं। प्लैन्स भी अच्छे- अच्छे बनाये हैं। प्लैन को प्रैक्टिकल में लाने के निमित्त हो। जितने अच्छे प्लैन बनाये हैं उतने स्वयं भी अच्छे हो। बाप को अच्छे लगते हो। सेवा की लगन बहुत अच्छी है। सेवा का सदाकाल की सफलता का आधार उदारता है। सभी का लक्ष्य, शुभ संकल्प बहुत अच्छा है और एक ही है। सिर्फ एक शब्द एड करना है। एक बाप को प्रत्यक्ष करना है - एक बनकर एक को प्रत्यक्ष करना है। सिर्फ यह एडीशन करनी है। एक बाप का परिचय देने के लिए अज्ञानी लोग भी अंगुली का इशारा करेंगे। दो अंगुली नहीं दिखायेंगे। सहयोगी बनने की निशानी भी एक अंगुली दिखायेंगे। आप विशेष आत्माओं की यही विशेषता की निशानी चली आ रही है।

तो इस गोल्डन जुबली को मनाने के लिए वा प्लैन बनाने के लिए सदा दो बातें याद रहें - ‘‘एकता और एकाग्रता’’। यह दोनों श्रेष्ठ भुजायें हैं, कार्य करने की, सफलता की। एकाग्रता अर्थात् सदा निर्व्यर्थ संकल्प, निर्विकल्प। जहाँ एकता और एकाग्रता है वहाँ सफलता गले का हार है। गोल्डन जुबली का कार्य इन विशेष दो भुजाओं से करना। दो भुजायें तो सभी को हैं। दो यह लगाना तो चतुर्भुज हो जायेंगे। सत्यनारायण और महालक्ष्मी को चार भुजायें दिखाई हैं। तो अभी सत्यनारायण, महालक्ष्मियाँ हो। चतुर्भुजधारी बन हर कार्य करना अर्थात् साक्षात्कार स्वरूप बनना। सिर्फ 2 भुजाओं से काम नहीं करना। 4 भुजाओं से करना। अभी गोल्डन जुबली का श्रीगणेश किया है ना। गणेश को भी 4 भुजा दिखाते हैं। बापदादा रोज मीटिंग में आते हैं। एक चक्र में ही सारा समाचार मालूम हो जाता है। बापदादा सभी का चित्र खींच जाते हैं। कैसे-कैसे बैठे हैं। शरीर रूप में नहीं। मन की स्थिति के आसन का फोटो निकालते हैं। मुख से कोई क्या भी बोल रहा हो लेकिन मन से क्या बोल रहे हैं, वह मन के बोल टेप करते हैं। बापदादा के पास भी सबके टेप किये हुए कैसेट्स हैं। चित्र भी हैं, दोनों हैं। वीडियो, टी.वी.आदि जो चाहो वह है। आप लोगों के पास अपना कैसेट तो है ना। लेकिन कोई-कोई को अपने मन की आवाज़, संकल्प का पता नहीं चलता है। अच्छा!

यूथ प्लैन सभी को अच्छा लगता है। यह भी उमंग-उत्साह की बात है। हठ की बात नहीं है। जो दिल का उमंग होता है वह स्वत: ही औरों में भी उमंग का वातावरण बनाते हैं। तो यह पद यात्रा नहीं लेकिन उमंग की यात्रा है। यह तो निमित्त मात्र है। जो भी निमित्त मात्र कार्य करते हो उसमें उमंग-उत्साह की विशेषता हो। सभी को प्लैन पसन्द है। आगे भी जैसे चार भुजाधारी बन करके प्लैन प्रैक्टिकल में लाते रहेंगे तो और भी एडीशन होती रहेगी। बापदादा को सबसे अच्छे ते अच्छी बात यह लगी कि सभी को गोल्डन जुबली धूमधाम से मनाने का उमंग-उत्साह वाला संकल्प एक है। यह फाउण्डेशन सभी के उमंग उत्साह के संकल्प का एक ही है। इसी एक शब्द को सदा अण्डरलाइन लगाते आगे बढ़ना। एक हैं, एक का कार्य है। चाहे किस भी कोने में हो रहा है, चाहे देश में हो वा विदेश में हो। चाहे किसी भी जोन में हो, इस्ट में हो, वेस्ट में हो लेकिन एक हैं, एक का कार्य है। ऐसे ही सभी का संकल्प है ना! पहले यह प्रतिज्ञा की है ना। मुख की प्रतिज्ञा नहीं, मन में यह प्रतिज्ञा अर्थात् अटल संकल्प। कुछ भी हो जाये लेकिन टल नहीं सकते। अटल। ऐसे प्रतिज्ञा सभी ने की? जैसे कोई भी शुभ कार्य करते हैं तो प्रतिज्ञा करने के लिए सभी पहले मन में संकल्प करने की निशानी कंगन बांधते हैं। कार्यकर्त्ताओं को चाहे धागे का, चाहे किसका भी कंगन बांधते हैं। तो यह श्रेष्ठ संकल्प का कंगन है ना। और जैसे आज सभी ने भण्डारी में बहुत उमंग-उत्साह से श्रीगणेश किया। ऐसे ही अभी यह भी भण्डारी रखो। जिस में सभी यह अटल प्रतिज्ञा समझ यह भी चिटकी डालें। दोनों भण्डारी साथ-साथ होंगी तब सफलता होगी। और मन से हो, दिखावे से नहीं। यही फाउण्डेशन है। गोल्डन बन गोल्डन जुबली मनाने का यह आधार है। इसमें सिर्फ एक स्लोगान याद रखना - ‘‘न समस्या बनेंगे न समस्या को देख डगमग होंगे।’’ स्वयं भी समाधान स्वरूप होंगे और दूसरों को भी समाधान देने वाले। यह स्मृति स्वत: ही गोल्डन जुबली को सफलता स्वरूप बनाती रहेगी। जब फाइनल गोल्डन जुबली होगी तो सभी को आपके गोल्डन स्वरूप अनुभव होंगे। आप में गोल्डन वर्ल्ड देखेंगे। सिर्फ कहेंगे नहीं गोल्डन दुनिया आ रही है लेकिन प्रैक्टिल दिखायेंगे। जैसे जादूगर लोग दिखाते जाते, बोलते जाते - यह देखो... तो आपका यह गोल्डन चेहरा, चमकता हुआ मस्तक, चमकती हुई आँखें, चमकते हुए ओंठ यह सब गोल्डन एज का साक्षात्कार करावें। जैसे चित्र बनाते हैं ना - एक ही चित्र में अभी-अभी ब्रह्मा देखे अभी-अभी कृष्ण देखो, विष्णु देखो। ऐसे आपका साक्षात्कार हो। अभी-अभी फरिश्ता, अभी-अभी विश्व-महाराजन विश्वमहारानी रूप। अभी-अभी साधारण सफेद वस्त्रधारी। यह भिन्न-भिन्न स्वरूप आपके इस गोल्डन मूर्त्त से दिखाई दें। समझा!

जब इतने चुने हुए रूहानी गुलाब का गुलदस्ता इकठ्ठा हुआ है। एक रूहानी गुलाब की खुशबू कितनी होती है। और यह इतना बड़ा गुलदस्ता कितनी कमाल करेगा! और एक-एक सितारे में संसार भी है। अकेले नहीं हो। उन सितारों में दुनिया नहीं है। आप सितारों में तो दुनिया है ना! कमाल तो होनी ही है। हुई पड़ी है। सिर्फ जो ओटे सो अर्जुन बने। बाकी अर्जुन अर्थात् नम्बरवन। अभी इस पर इनाम देना। पूरी गोल्डन जुबली में - न समस्या बना न समस्या को देखा। निर्विघ्न, निर्विकल्प, निर्विकारी तीनों ही विशेषता हों। एसी गोल्डन स्थिति में रहने वालों को वह इनाम देना। बापदादा को भी खुशी है। विशाल बुद्धि वाले बच्चों को देख खुशी तो होगी ना। जैसे विशाल बुद्धि वैसे विशाल दिल। सभी विशाल बुद्धि वाले हो तब तो प्लेन बनाने आये हो। अच्छा-

सदा स्वयं को आधार स्वरूप, उद्धार करने वाले स्वरूप, सदा उदारता वाले उदार दिल, उदारचित्त, सदा एक हैं एक का ही कार्य है, ऐसे एकरस स्थिति में स्थित रहने वाले, सदा एकता और एकाग्रता में स्थित रहने वाले ऐसे विशाल बुद्धि, विशाल चित्त बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

मुख्य भाई-बहनों से - सभी ने मीटिंग की। श्रेष्ठ संकल्पों की सिद्धि होती ही है। सदा उमंग उत्साह से आगे बढ़ना यही विशेषता है। मंसा सेवा की विशेष ट्रायल करो। मंसा सेवा जैसे एक चुम्बक है। जैसे चुम्बक कितनी भी दूर की सुई को खींच सकता है ऐसे मंसा सेवा द्वारा घर बैठे समीप पहुँच जायेगा। अभी आप लोग बाहर ज्यादा बिजी रहते हो, मंसा सेवा को यूज़ करो। स्थापना में जो भी बड़े कार्य हुए हैं तो सफलता मंसा सेवा की हुई है। जैसे वह लोग रामलीला या कुछ भी कार्य करते हैं तो कार्य के पहले अपनी स्थिति को उसी कार्य के अनुसार व्रत में रखते हैं। तो आप सभी भी मंसा सेवा का वृत लो। व्रत न धारण करने से हलचल में ज्यादा रहते हो। इसलिए रिजल्ट में कभी कैसा कभी कैसा। मंसा सेवा का अभ्यास ज्यादा चाहिए। मंसा सेवा करने के लिए लाइट हाउस और माइट हाउस स्थिति चाहिए। माइट और माइक दोनों इकठ्ठा हो। माइक के आगे माइट होकर बोलना है। माइक भी हो माइट भी हो। मुख भी माइक है।

तो माइट होकर माइक से बोलो। जैसे पावरफुल स्टेज में ऊपर से उतरा हूँ, अवतार होकर सबके प्रति वह सन्देश दे रहा हूँ। अवतार बोल रहा हूँ। अवतरित हुआ हूँ। अवतार की स्टेज पावरफुल होगी ना। ऊपर से जो उतरता है, उसकी गोल्डन एज स्थिति होती है ना! तो जिस समय आप अपने को अवतार समझेंगे तो वही पावरफुल स्टेज है। अच्छा-

यूथ रैली के बारे में तथा यूथ विंग के बारे में - यूथ विंग भले बनाओ। जो भी करो - सन्तुष्टता हो, सफलता हो। बाकी तो सेवा के लिए ही जीवन है। अपने उमंग से अगर कोई कार्य करते हैं तो उसमें कोई हर्जा नहीं। प्रोग्राम है, करना है तो वह दूसरा रूप हो जाता है। लेकिन अपने उमंग उत्साह से करने चाहते हैं तो कोई हर्जा नहीं। जहाँ भी जायेंगे वहाँ जो भी मिलेंगे, जो भी देखेंगे तो सेवा है ही। सिर्फ बोलना ही सर्विस नहीं होती लेकिन अपना चेहरा सदा हर्षित हो। रूहानी चेहरा भी सेवा करता है। लक्ष्य रखें उमंग- उत्साह से खुशी-खुशी से रूहानी खुशी की झलक दिखाते हुए आगे बढ़ें। सिर्फ जबरदस्ती कोई को नहीं करना है। प्रोग्राम बना है तो करना ही है, ऐसी कोई बात नहीं है, अपना उमंग-उत्साह है तो करे, अच्छा है।

अगर कोई में उमंग नहीं है तो बंधे हुए नहीं हैं। हर्जा नहीं है। वैसे जो लक्ष्य था इस गोल्डन जुबली तक सब एरिया को कवर करने का तो जैसे वह पैदल चलने वाले अपने ग्रुप में आयेंगे वैसे बस द्वारा आने वाले भी हों। हर जोन वा हर एरिया में बस द्वारा सर्विस करते हुए दिल्ली पहुँच सकते हैं। दो प्रकार के ग्रुप बना दो। एक बस द्वारा आते रहें और सेवा करते आवें और एक पैदल द्वारा। डबल हो जायेगा। कर सकते हैं, यूथ हैं ना। उनको कहाँ न कहाँ शक्ति तो लगानी ही है। सेवा में शक्ति लगेगी तो अच्छा है। इसमें दोनों ही भाव सिद्ध हो जाएं - सेवा भी सिद्ध हो और नाम रखा है पदयात्रा तो वह भी सिद्ध हो जाए। हर स्टेट वाले अगर उनका (पदयात्रियों का) इन्टरव्यू लेने का पहले से ही प्रबन्ध रखेंगे तो आटोमेटिकली आवाज़ फैलेगा। लेकिन सिर्फ यह जरूर होना चाहिए कि रूहानी यात्रा दिखाई दे, पदयात्रा सिर्फ नहीं दिखाई दे। रूहानियत और खुशी की झलक हो। तो नवीतना दिखाई देगी। साधारण जैसे औरों की यात्रा निकलती है, वैसे नहीं लगे लेकिन ऐसे लगे यह डबल यात्री हैं, एक यात्रा नहीं करते हैं। याद की यात्रा वाले भी हैं, पद यात्रा वाले भी हैं। डबल यात्रा का प्रभाव चेहरे से दिखाई दे तो अच्छा है।

अलग-अलग ग्रुप से

1. सेवा करो और सन्तुष्टता लो। सिर्फ सेवा नहीं करना लेकिन ऐसी सेवा करो जिसमें सन्तुष्टता हो। सभी की दुआयें मिले। दुआओं वाली सेवा सहज सफलता दिलाती है। सेवा तो प्लैन प्रमाण करनी ही है और खूब करो। खुशी उमंग से करो लेकिन यह ध्यान जरूर रखो - जो सेवा की उसमें दुआयें प्राप्त हुई? या सिर्फ मेहनत की? जहाँ दुआयें होगी वहॉ मेहनत नहीं होगी। तो अभी यही लक्ष्य रखो कि जिससे भी सम्पर्क में आयें उसकी दुआएं लेते जाएँ। जब सबकी दुआयें लेंगे तब आधाकल्प आपके चित्र दुआयें देते रहेंगे। आपके चित्र से दुआये लेने आते हैं ना। देवी या देवता के पास दुआयें लेने जाते हैं ना। तो अभी सर्व की दुआयें जमा करते हो तब चित्रों द्वारा भी देते रहते हो। फंक्शन करो, रैली करो.. बी.आई.पीज, आई पीज सर्विस करो, सब कुछ करो लेकिन दुआओं वाली सेवा करो। (दुआयें लेने का साधन क्या है?) ‘हाँ जी’ का पाठ पक्का हो। कभी भी किसी को ना ना करके हिम्मतहीन नहीं बनाओ। मानो अगर कोई रांग भी हो तो उसको सीधा रांग नहीं कहो। पहले उसे दिलासा दो, हिम्मत दिलाओ। उसको हाँ करके पीछे समझाओ तो वह समझ जायेगा। पहले से ही ना ना कहेंगे तो उसकी जो थोड़ी भी हिम्मत होगी वह खत्म हो जायेगी। रांग तो हो भी सकता है लेकिन रांग को रांग कहेंगे तो वह अपने को रांग कभी नहीं समझेगा। इसलिए पहले उसे हाँ कहो, हिम्मत बढ़ाओ फिर वह स्वयं जजमेन्ट कर लेगा। रिगार्ड दो। यह विधि सिर्फ अपना लो। रांग भी हो तो पहले अच्छा कहो, पहले उसको हिम्मत आये। कोई गिरा हुआ हो तो क्या उसको और धक्का देंगे या उठायेंगे... उसे सहारा देकर पहले खड़ा करो। इसको कहते हैं - ‘उदारता’। सहयोगी बनने वालों को सहयोगी बनाते चलो। तुम भी आगे, मैं भी आगे। साथ-साथ चलते चलो। हाथ मिलाकर चलो। तो सफलता होगी। और सन्तुष्टता की दुआयें मिलेगी। ऐसी दुआयें लेने में महान बनो तो सेवा में स्वत: महान हो जायेंगे।

सेवाधारियों से - सेवा करते हुए सदा अपने को कर्मयोगी स्थिति में स्थित रहने का अनुभव करते हो कि कर्म करते हुए याद कम हो जाती है और कर्म में बुद्धि ज्यादा रहती है! क्योंकि याद में रहकर कर्म करने से कर्म में कभी थकावट नहीं होती। याद में रहकर कर्म करने वाले कर्म करते सदा खुशी का अनुभव करेंगे। कर्मयोगी बन कर्म अर्थात् सेवा करते हो ना! कर्मयोग के अभ्यासी सदा ही हर कदम में वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ बनाते हैं। भविष्य खाता सदा भरपूर और वर्तमान भी सदा श्रेष्ठ। ऐसे कर्मयोगी बन सेवा का पार्ट बजाते हो। भूल तो नहीं जाता। मधुबन में सेवाधारी हैं तो मधुबन स्वत: ही बाप की याद दिलाता है। सर्व शक्तियों का खजाना जमा किया है ना! इतना जमा किया है जो सदा भरपूर रहेंगे। संगमयुग पर बैटरी सदा चार्ज है। द्वापर से बैटरी ढीली होती। संगम पर सदा भरपूर, सदा चार्ज है। तो मधुबन में बैटरी भरने नहीं आते हो, स्वेज मनाने आते हो। बाप और बच्चों का स्नेह है इसलिए मिलना, सुनना, यही संगमयुग के स्वेज हैं। अच्छा –